Wednesday, February 27, 2013

श्री नानकजी साहिब कह रहे हैं -----


37 - सुणिआ मंनिआ मनि कीता भाऊ











सुणिआ मनिआ मनि कीता भाऊ
अंतरगति तीरथि मलि नाउ
जा करता सिरठी कउ साजे
आपे जानै सोई
किव करि आखा किव सालाही
किउ बरनी किव जाणा ॥

जपजी के माध्यम से आदि गुरूजी साहिब बता रहे हैं …..

वह

  • सृष्टि का रचना करता है ,
  • करता पुरुष है
  • सबकी सुध रखता है
  • जो उसे बैठाए अपनें मन में
  • वह स्वयं तीर्थ बन जाता है
  • लेकिन उसे कैसे ब्यक्त करूँ ?
  • कैसे उसका गुण गान करूँ ?

और

कैसेजानू

भक्त ह्रदय और बुद्धि के मध्य जब लटक जाता है तब ऎसी बात करता है ; कभीं वह वेदान्त की बात करेगा, कभीं भक्ति की और कभीं सांसारिक ब्यक्ति जैसी / गुरू जी साहिब बार – बार नाम जप की बात कहते रहे हैं और यहाँ कहते हैं कैसे उसे बताऊँ ? क्या जरुरत है उसे बतानें की और किसको बताना चाहते हैं ? और कौन सुननें वाला है और कौन सुन कर समझनें वाला है ? यहाँ सब भोग से भोग में हैं जो भगवान को भी भोग की बस्तु समझते हैं , उनको क्या लेना - क्या देना उसे जान कर लेकिन नानकजी साहिब बताना जरुर चाहते हैं ,
यह उनकी मजबूरी है , वे बिनु बताए रह नहीं सकते / नानकजी साहिब के अंदर जो ऊर्जा उठ रही है उसे कहीं तो प्रयोग करना ही है , वे उस ऊर्जा को बतानें के प्रयाश में लगा रहे हैं / नानक जी के तीन मन्त्र हैं ; जप करो , कीरत करो और जो अनुभूति हो उसे लोगों में बाटो और यहाँ उनको बाटने में अड़चन आ रही है /

एक परा भक्त जो साकार उपासना से निराकार में पहुच गया हो ,अपरा भक्ति से परा में पहुँच गया हो ,
वह एक कटी पतंग की तरह बाहर - बाहर से दिखता है लेकिन अन्दर से वह शांत झील की तरह रहता हुआ कस्तूरी मृग की तरह प्रभु के चारों तरफ नाचता रहता है । ऐसा भक्त बाहर से पागल सा दिखता है लेकिन होता है ,त्रिकालदर्शी ।
आदि गुरु परा भक्त थे ,
जो कहना चाहते थे कह न पाए ,
जो देखना चाहते थे , उसे देखे जरुर पर ब्यक्त न कर पाए ।
ऐसे गुरु ,
ऐसे भक्त ,
जो प्रभु से परिपूर्ण होते हैं , वे कई सदियों के बाद प्रकट होते हैं ।
धन्य था वह वक़्त , जब भारत भूमि पर -----
नानकजी साहिब ,मीरा और कबीरजी साहिब एक साथ रहे
==== ओम् ======

Sunday, February 17, 2013

गुरु प्रसाद का अगला भाग


33 - असंख्य जप असंख्य भाऊ ......


" असंख्य जप असंख्य भाऊ ...
असंख्य पूजा असंख्य तप ताऊ ....
असंख्य गरंथ मुखि वेद पाठ ......
असंख्य जोग मनि रहहि उदास ....
असंख्य मोनि लिव लाइ तार ....
कुदरति कवण कहा बीचारु ......
तूं सदा सलामत निरंकार .....”

श्री नानक जी साहिब कह रहे हैं ...

जप , तप , भक्ति करता अनेक हैं
वेद शास्त्रों के पाठक अनेक हैं
समभाव खोजी अनेक हैं
मौन खोजी भी अनेक हैं
लेकिन
तूं तो सनातन निरंकार है
 मैं तेरे को कैसे समझूं ?

भक्त भगवान से प्रश्न कर रहा है ऐसा भक्त जो परम प्रीति मे डूबा है / परम प्यारा भक्त क्षण भर भी प्रभु से अलग नहीं रह पाता , ज्योही उसका सम्बन्ध प्रभु से टूटता है वह ब्याकुल हो उठता है और प्रभु से प्रश्न करनें लगता है / यहाँ नानकजी साहिब जो बात कह रहे हैं वह उनकी बेचैनी है /
एक भक्त तब प्रभु से वार्तालाप करता है जब वह परा भक्ति के आयाम से वापस अपरा में आ गया होता है । श्री नानक जी साहिब कह रहे हैं , लोग जप , तप , वेद शास्त्र के माध्यमो से तुझे खोज रहे हैं लेकिन तूं तो निराकार सनातन है , मैं तुझको कैसे समझूं ? श्री गुरूजी साहिब एक तरफ तो यह कह रहे हैं कि तूं निराकार सनातन है और दूसरी तरफ यह भी कह रहे हैं कि मैं तेरे को कैसे जानूं ? क्या इतना जानना कि तूं निराकार सनातन है , कुछ अधूरा जानना है ?
=

गुरु प्रसाद का अगला भाग


33 - असंख्य जप असंख्य भाऊ ......


" असंख्य जप असंख्य भाऊ ...
असंख्य पूजा असंख्य तप ताऊ ....
असंख्य गरंथ मुखि वेद पाठ ......
असंख्य जोग मनि रहहि उदास ....
असंख्य मोनि लिव लाइ तार ....
कुदरति कवण कहा बीचारु ......
तूं सदा सलामत निरंकार .....”

श्री नानक जी साहिब कह रहे हैं ...

जप , तप , भक्ति करता अनेक हैं
वेद शास्त्रों के पाठक अनेक हैं
समभाव खोजी अनेक हैं
मौन खोजी भी अनेक हैं
लेकिन
तूं तो सनातन निरंकार है
 मैं तेरे को कैसे समझूं ?

भक्त भगवान से प्रश्न कर रहा है , ऐसा भक्त जो परम प्रीति मे डूबा है / परम प्यारा भक्त क्षण भर भी प्रभु से अलग नहीं रह पाता , ज्योही उसका सम्बन्ध प्रभु से टूटता है वह ब्याकुल हो उठता है और प्रभु से प्रश्न करनें लगता है / यहाँ नानकजी साहिब जो बात कह रहे हैं वह उनकी बेचैनी है /
एक भक्त तब प्रभु से वार्तालाप करता है जब वह परा भक्ति के आयाम से वापस अपरा में आ गया होता है । श्री नानक जी साहिब कह रहे हैं , लोग जप , तप , वेद शास्त्र के माध्यमो से तुझे खोज रहे हैं लेकिन तूं तो निराकार सनातन है , मैं तुझको कैसे समझूं ? श्री गुरूजी साहिब एक तरफ तो यह कह रहे हैं कि तूं निराकार सनातन है और दूसरी तरफ यह भी कह रहे हैं कि मैं तेरे को कैसे जानूं ? क्या इतना जानना कि तूं निराकार सनातन है , कुछ अधूरा जानना है ?

गुरु प्रसाद का अगला भाग


33 - असंख्य जप असंख्य भाऊ ......


" असंख्य जप असंख्य भाऊ ...
असंख्य पूजा असंख्य तप ताऊ ....
असंख्य गरंथ मुखि वेद पाठ ......
असंख्य जोग मनि रहहि उदास ....
असंख्य मोनि लिव लाइ तार ....
कुदरति कवण कहा बीचारु ......
तूं सदा सलामत निरंकार .....”

श्री नानक जी साहिब कह रहे हैं ...

जप , तप , भक्ति करता अनेक हैं
वेद शास्त्रों के पाठक अनेक हैं
समभाव खोजी अनेक हैं
मौन खोजी भी अनेक हैं
लेकिन
तूं तो सनातन निरंकार है
मैं तेरे को कैसे समझूं ?

भक्त भगवान से प्रश्न कर रहा है , ऐसा भक्त जो परम प्रीति मे डूबा है / परम प्यारा भक्त क्षण भर भी प्रभु से अलग नहीं रह पाता , ज्योही उसका सम्बन्ध प्रभु से टूटता है वह ब्याकुल हो उठता है और प्रभु से प्रश्न करनें लगता है / यहाँ नानकजी साहिब जो बात कह रहे हैं वह उनकी बेचैनी है /
एक भक्त तब प्रभु से वार्तालाप करता है जब वह परा भक्ति के आयाम से वापस अपरा में आ गया होता है । श्री नानक जी साहिब कह रहे हैं , लोग जप , तप , वेद शास्त्र के माध्यमो से तुझे खोज रहे हैं लेकिन तूं तो निराकार सनातन है , मैं तुझको कैसे समझूं ? श्री गुरूजी साहिब एक तरफ तो यह कह रहे हैं कि तूं निराकार सनातन है और दूसरी तरफ यह भी कह रहे हैं कि मैं तेरे को कैसे जानूं ? क्या इतना जानना कि तूं निराकार सनातन है , कुछ अधूरा जानना है ?

Sunday, February 10, 2013

श्री नानकजी साहिब कह रहे हैं ----


31 - मन्नै पावहि मोखु दुआरु

" मंनै पावहि मोखु दुआरु
मंनै परवारै साधारु
मंनै तरै तारे गुरु सिख
मंनै नानक भवहि न भिख
ऐसा नाम निरंजन होई
जे को मंनि जानै मनि कोई "

परम प्रीति में डूबे गुरु की इस वाणी में उनका अपना अनुभव छिपा हुआ है , जो इस बाणी से एक लय है , वह प्रभु को खोजता नहीं , उसमें प्रभु बसे होते हैं /


यहाँ गुरूजी कह रहे हैं --
प्रभु का नाम निरंजन होई
जो कोई उसे ले मन बैठाई
प्रभु प्रेमी ना होई भिखारु
सुमीर - सुमीर सब उतर ही पारु
परम प्रीति का रंग है ऐसा
एक बार चढ़े सो
चढ़ता ही जाए
साधना के तीन तत्त्व हैं ; प्रभु , गुरु और सिख [ भक्त ] ; प्रभु ध्येय है , गुरु मार्ग हैं और सिख वह परम प्रेमी होता है जो स्वयं को अपनें गुरु को समर्पित कर देता है ।
प्रभु परम सत्य हैं , परम सत्य की ओर रुख को जो करवाता है ,वह गुरु होता है
और
सिख वह है जो गुरु के हर इशारे को समझता है और उस पर अमल करता है ।
ऐसा कहा गया है …....
पारस एक पत्थर है जिसके संपर्क में लोहा आ कर सोना बन जाता है
लेकिन
यदि एक टोकरागोबर को पारस के पास रख दिया जाए
तो
क्या वह गोबर भी सोना बन जाएगा ?
जी नहीं , पारस केवल लोहे को सोना बनाता है । गुरु है पारस और सिख है - लोहा । यहाँ यह समझना जरुरी है , गुरु तो गुरु ही रहता है जैसे पारस लेकिन सोना बननें के लिए सिख [ लोहा ] बनना ही पड़ेगा , यदि वह गोबर है तो परम गुरु कुछ नहीं कर पायेगा ।


======= एक ओंकार =====

Monday, February 4, 2013

श्री नानक जी साहिब कह रहे हैं -----


गुर मुखि नादं गुर मुखि वेदं
   गुर मुखि रहिआ समाई
   गुरु ईसरु गुरु गोरखु वरमा
   गुरु पारबती माई


आदि गुरु श्री कह रहे हैं ...
  • गुरु मुख में नाद है .....
  • गुरु मुख में वेदों का रहस्य है .....
  • गुरु मुख में ही सब समाया हुआ है .....
  • गुरु ईश्वर है .....
  • गुरु शिव है .......
  • गुरु ब्रह्मा है ....
  • गुरु विष्णु है ...
  • और गुरु ही माँ पारवती है

    लेकिन गुरु कौन है 

    ?
    नानकजी साहिब इस सम्बन्ध में कहते हैं
    -----
  • पंचा का गुरु केवल ध्यानु 

    आज इतना ही .....

    =एक ओंकार