Monday, January 28, 2013

श्री नानकजी साहिब कहते हैं -----

अमृत बेला में उसे पुकारो 

क्या है  अमृत बेला ?

अमृत वह रसायन है जो जब मनुष्य के रगों में बहता है तब वह मनुष्य अमर हो उठता है
बेला अर्थात समय , घडी

अमृत बेला वह घडी है ----

जहाँ न दिन होता है ....
जहाँ न रात होती है ....
और ....
जिससे एक प्रारम्भ हो रहा होता  है एवं जिसमें एक बिलीन हो रहा होता है ....
अर्थात ....
अमृत बेला वह है जो दिन एवं रात के अंत एवं प्रारम्भ का द्रष्टा है लेकिन न दिन है न रात 

भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं [ सूत्र 7.12 - 7.13 ] 

तीन गुणों के भावों से  मोहित मनुष्य मुझे नहीं समझता और ये तीन गुणों की उपज मुझसे है लेकिन
मैं गुणातीत हूँ /
तीन गुण और उनके सभीं भाव श्री कृष्ण से हैं और स्वयं  प्रभु गुणातीत - भावातीत हैं ;
 हैं न यह सोचनें का बिषय ? 

श्री नानकजी साहिब यह भी कहते हैं :.......

सोचे सोचि न होवहीं 
अर्थात
 जब तक बुद्धि में सोच की ऊर्जा है तबतक उस बुद्धि में उसकी उपस्थिति की आहट नहीं मिलती , लेकिन ज्योंही बुद्धि सोच रहित होती है उसे प्रभु की आहत मिलनें लगती है / 
वह घड़ी जहाँ न दिन हो , जहाँ न रात हो और जो दोनों के होनें का श्रोत हो वह घड़ी वह है जिससे समय प्रारम्भ होता है और जिसमें समय सिमटता है अर्थात वह आयाम प्रभु का आयाम होता है /
विज्ञान में वह क्या हो सकता है जिससे एवं जिसमें Big Bang एवं Big Crunch की घटना घटती होगी ?
श्री नानक जि साहिब का अमृत बेला हिंदू साधना में संध्या नाम से जाना जाता है और जो घडी ध्यान के लिए अति उत्तम मानी जाती है / 

=== ओम् ======

Wednesday, January 23, 2013

एक खोज - - - - -

मनुष्य स्वयं के लिए पाठशालाएं खोल रखी है
मनुष्य स्वयं के लिए हस्पताल खोल रखे हैं
मनुष्य स्वयं के लिए विज्ञान की खिडकी से प्रकृति के रहस्यों को देखता है
मनुष्य जो कुछ भी करता है वह सब स्वयं के लिए ही होता है 

लेकिन 

मनुष्य जो भी करता है उसमें संदेह की ऊर्जा होती है , ऐसा क्यों ?
मनुष्य  का मन जिस दिन संदेह से मुक्त होता है उस दिन उसके मन में प्रभु की किरण फूटती है

संदेह युक्त मन भोग जीवन का आधार है
और संदेह रहित मन से योग की पौध उगती है 

मनुष्य आज स्वयं को छोड़ कर सब को देख रहा है , चाहे पृथ्वी पर स्थिति सूचनाएं हों या फिर आकाश में स्थित हों , लेकिन इस देख में वह स्वयं से दूर होता जा रहा है और यही कारण है मनुष्य की अतृप्तता का / आज मनुष्य के पास क्या - क्या नहीं है , भोग की सभीं चीजें तो हैं लेकिन उस से हमें मात्र कुछ घडी के लिए तृप्ति मिल पाती है और पुनः हमारी खोज प्रारम्भ हो जाती है /

मनुष्य जैसे - जैसे स्व से दूर हो रहा है , वैसे - वैसे वह और - और अतृप्त होता जा रहा है / 
प्रकृति से प्रकृति में रहते हुए मनुष्य प्रकृति का सम्राट है लेकिन उसके अंदर भय इतना है जिसे मापना संभव नहीं और अपनें इस भय के कारण वह एक गुलाम से भी नीचे की मानसिक स्थित में रहता है / आसक्ति , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय जैसे - जैसे सघन हो रहे हैं वैसे - वैसे अहंकार और सघन हो रहा है और वह अहँकार कभीं मंदिर की ओर रुख कर देताहै तो कभीं रूप - रंग में उलझा रखता है / आज मनुष्य एक यंत्र की भांति हो कर रह गया है और गुण तत्त्वों  की ऊर्जा से वह गतिमान है / 

जबतक गुण तत्वों के माध्यम से निर्गुण की छाया नहीं दिखती , मनुष्य कभीं शांत नहीं हो सकता और जिस घडी निर्गुण की किरण दिखती है उसी घडी गुण - ऊर्जा,  निर्गुण ऊर्जा में बदल जाती है और वही भोगी मनुष्य योगी के रूप में रूपांतरित हो उठता है लेकिन लोग तो उसे भोगी ही समझते रहते हैं /

योगी को योगी समझता है
लेकिन ....
भोगी को भोगी नहीं समझता
और 


  • योगी से भोगी मात्र इस कामना से जुड़ता है  कि उसे भोग में उस योगी से मदत मिल सकती है 
  • न स्वयं को धोखा दो , न पर को 
  • स्वयं से स्वयं में देखो , और यह अभ्यास जैसे - जैसे सघन होगा , आप रूपांतरित होते चले जायेंगे 
  • रूपांतरण ही प्रभु की ओर पहुचाता है 


==== ओम् ======

Sunday, January 13, 2013

सुमिरन कौन करता है ?


[ 11 ho does recite ?





सुमिरन वह करता है ----
  • जिसको राग में बैराग्य दिखता है ....  - 4.10
  • जो भोग को समझ कर योग की ओर चलना चाहता है .... - 7.11
  • जो समभाव वाला हो .... - 2.56 , 2.57
  • जो जन्म जीवन एवं मृत्यु में सम भाव रहता हो ....  - 2.11
  • जिसके पीठ के पीछे भोग हो और आँखों में प्रभु बसा हो .... - 2.69

गुरु साहिब कहते हैं

तुम जप करना प्रारम्भ तो करो ,
उसे अपनें जीवन से जोड़ो तो सही धीरे धीरे
अभ्यास से तुम वहाँ पहुँच जाओगे

जहां ------
  • भोग की दौड़ न होगी
  • चिंता का आवागमन न होगा 
  • तन मन एवं बुद्धि में होश होगा
  • पुरे ब्रहांड में एक दिखेगा और वह होगा
    एक ओंकार
एक ओंकार की धड़कन सुननें के लिए
आदि गुरु जैसा ह्रदय चाहिए

और

यह संभव है तब
----
जब

शरीर मन एवं बुद्धि में गुरु की  उर्जा का संचार हो रहा हो 
,
और

गुरु की ऊर्जा का श्रोत है

जपजी का मूलमंत्र


==== एक ओंकार =====


Sunday, January 6, 2013

जप जी का मूल मन्त्र

सैभंग [ Saibhang ] 

Self Illuminating 

जपजी साहिब में सैभंग आठवां सूत्र है जिसका अर्थ है , वह जो स्वप्रकाशित है अर्थात प्रभु स्वप्रकाशित है , ऎसी बात आदि गुरु जी साहिब को तब पता लगी जब वे दो दिन तक दरिया में  आम लोगों के लिए बह गए थे लेकिन दरिया उनको परम के चरणों में पहुंचा कर  परम मय बना दिया था / 

प्रभु को प्रकाश के माध्यम से समझाया जाता है , आखिर प्रकाश है क्या ?

उन्नीसवीं शताब्दी के महानतम वैज्ञानिक जैसे अलबर्ट आइन्स्टीन , मैक्स प्लैंक , डिरेक , श्रोडिंगर , सी वी रमण एवं अन्य ऐसे लोग जिनको नोबल पुरष्कार मिला , वे सभीं प्रकाश को अपना - अपना शोध का विषय बनाया था /
जर्मनी का महान कवि गेटे जब आखिरी श्वास भर रहा था तब बोला , सभीं चिरागों  को बुझा दो अब मुझे परम प्रकाश दिखनें लगा है /

गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं : -----


  • सूत्र - 9.19  सूर्य रूप में मैं तपता हूँ 
  • सूत्र - 7.8 , 7.9 , 10.23,15.12
  • सूर्य , चन्द्रमा एवं अग्नि , मैं हूँ , उनका तेज मैं हूँ और उनका प्रकाश भी मैं हूँ 
  • सूत्र - 13.17 
  • ब्रह्म ज्योतियों का ज्योति है , परम ज्योति 
  • सूत्र - 15.6
  • परम पद स्वप्रकाशित है 
  • सूत्र - 14.6
  • सात्त्विक गुण में जब मनुष्य होता है तब उसे परम प्रकाश का बोध होता है 

मैक्स प्लैंक आग में से निकलती चिंगारी को देखा  और उनको हीट -  क्वांटा की सोच जग गयी लेकिन उस समय गणित इतनी मजबूत न थी कि उनकी बात को सिद्ध किया जा सके लेकिन कुछ समय बाद उनकी कही  गयी बात को गणित के आधार  पर सिद्ध किया गया और फिर उनके ही  सिद्धांत पर आइन्स्टाइन को भी नोबल पुरष्कार मिला था /
मनुष्य ध्यान , जप , तप , तपस्या , पूजा , पाठ  आदि माध्यमों से जन अपनें तन , मन एवं बुद्धि को निर्मल कर लेता है तब उसे बंद आँखों से परम प्रकाश समाधि में दिखता है और वह समाधि में स्थिति योगी उस समय स्वयं परम मय ही हो उठता है / 
सूर्य , चंद्रमा , अग्नि एवं अन्य माध्यमों से जो प्रकाश हम देखते हैं वे सभीं माध्यम  हैं जिनको पकड़ कर परम प्रकाश में पहुंचा जा सकता है /
झील में पूनम की चाँद के खिले प्रतिबिम्ब को पकड़ कर यदि उलटी दिशा में यात्रा किया जाये तो एक दिन वह यात्री असली चाँद पर पहुँच सकता है ठीक इसी तरह प्रकाशित सूचनाओं के माध्यम से उसे देखा जा सकता है जिसके के करण से उन सूचनाओं में प्रकाश की किरण फूट रही होती है / 

जरा गहराई में सोचना किसी दिन अकेले बैठ कर ----

हीरे में कौन चमक रहा होता है
सूर्य , चन्द्रमा , अग्नी में कौन चमक रहा है
ऊपर आकाश में तारों में कौन चमक रहा है

धीरे - धीरे जब यह सोच बुद्धि से उठ कर ह्रदय में पहुंचेगी , उसी वक्त पता चल जाएगा कि परम प्रकाश  क्या है जैसे आदि गुरु नानक जी  साहिब को पता चल गया और आगे जीवन भर उस प्रकाश की खोज में भागते रहे और हम सब  को भी बताते रहे कि ----

वह स्वप्रकाशित है 
खोजो उसे 
देखो उसे , अपनें ह्रदय में 

==== एक ओंकार =====



Tuesday, January 1, 2013

श्री ग्रन्थ साहिब का मूल मन्त्र कहता है :

मूल मंत्र कहता है : 



भय से भागो नहीं भय को समझो
  • भय अज्ञान की जननी है
  • भय में मन बुद्धि अस्थीर होते हैं
  • भय में ब्यक्ति कभी हाँ तो कभी ना कहता है
  • भय में ब्यक्ति के ऊर्जा का नाश होता है
  • भय नरक का द्वार खोलता है
  • प्रभु का आनंद पाना है तो
भय की साधना , मूल मंत्र को अपना कर करो
/
मूल मन्त्र कहता है

प्रभु का प्रसाद निर्भय को मिलता है
प्रभु निर्भय में बसता है
प्रभु ह्रदय में बसता है
अपनें ह्रदय में से भय को निकालो
अपनें ह्रदय में प्यार को बहनें दो
उस प्यार में तुम भी बहों
और
बहते - बहते पहुंचोगे
परमानंद में जो प्रभु का
परम धाम है /


========= ॐकार ==========