Friday, December 28, 2012

नानक , कबीर एवं मीरा

कबीर -        1440 - 1518
नानक -        1469 - 1539
मीरा   -         1498 - 1546 


  • श्री नानक जी साहिब और श्री कबीर जी साबिब 49 साल इस पृथ्वी पर एक साथ रहे 
  • श्री नानक जी साहिब , श्री कबीर जी साहिब और मीरा 20 साल इस पृथ्वी  पर एक साथ रहे 
  • नानक जी साहिब का ब्याह 19 साल की उम्र में हुआ 
  • 10 - 11 साल का भोग नानक को आदि गुरु नानक जी साहिब बना दिया 
  • Kali Bein दरिया श्री नानक को अपनें साथ दो दिन तक रखा 
  • दरिया दो दिनों के अंदर श्री नानक जी को जो दिया उसे वे 40 सालों तक बाटते रहे और जितना बाटा  वह उतना ही बढ़ता रहा / 

कबीर जी साहिब 


  • कुरान शरीफ में खुदा के 100 नामों की चर्चा है लेकिन गणना करनें पर 99 नाम मिलाते हैं /
  • अल कबीर उन सौ नामों में 37वां नाम है 

कुरान शरीफ यह भी कहता है : -----

जो ऑवल है वही आखिरी है
 अर्थात ......
अल्लाह से अल्लाह तक की यात्रा का नाम है , कुरान शरीफ 
अल्लाह से यात्रा प्रारम्भ होती है अल कबीर पर विश्राम होता है [ अल्लाह ओ अकबर ] और फिर .....
अल्लाह ध्वनि से जो यात्रा प्रारम्भ होती है वह कब और कैसे अल्लाह में पहुंचाती है , कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन इतनी बात जरुर समझाना कि -----
सभीं मनुष्य एक को खोज रहे हैं चाहे वे किसी जाति  , सम्प्रदाय के हों और वह है वह जिसको किसी नाम से पुकारा जा सकता है / 

शांडिल्य ऋषि कहते हैं ----

सभीं नाम उसके हैं लेकिन हैं अधूरे ....

==== एक ओंकार =====


Tuesday, December 25, 2012

आदि गुरु श्री नानक जी साहिब की परम पवित्र यात्रा - iii

काशी से कर्बला तक ------

आदि गुरु श्री नानक जी की काशी की यात्रा का पता श्री कबीर जी साहिब को चल गया था , श्री कबीर जी साहिब के शिष्यों में एक कौतुहल की लहर बह रही थी , वे यही सोच रहे थे कि वह परम पवित्र घडी कब आयेगी जब इस पृथ्वी के दो परम सिद्ध योगी हम सब के बीच होंगे / श्री कबीर जी साहिब के शिष्य सोच रहे थे कि देखते हैं इनके मध्य किस प्रकार की  चर्चा होती  है ? 
एक दिन वह घडी आ ही गयी ; श्री नानक जी और श्री कबीर जी गले मिले और तीन दिन तक श्री नानक जी साहिब श्री कबीर जी साहिब के यहाँ मेहमान बन कर रहे और चौथे दिन सुबह नानक जी पूरी को प्रस्थान
 किया /श्री कबीर जी साहिब अपनी कुटिया से श्री नानक जी साहिब के साथ बाहर निकले , दोनों गले मिले , दोनों कि आंखे भरी थी और फिर नानक जी आगे चल पड़े  और कबीर जी साहिब अपनी कुटिया में प्रवेश
 किया /
श्री नानक जी तीन दिनों तक श्री कबीर जी के साथ रहे लेकिन दोनों योगी आपस में कोई वार्ता नहीं किये , लेकिन उन दोनों का मौन यह जरुर ब्यक्त करता था की दोनों की सोच एक है , दोनों की पहुँच एक है और दोनों ऐसे हैं जैसे एक गंगा जल दो बोतलों में भरा हुआ हो / 
काशी ! काशी  वह स्थान  है जहाँ कभी भूकंप नहीं आता और जिस दिन काशी भूकंप के झटके को देखेगा , समझना प्रलय बहुत दूर नहीं / शिव की नगरी काशी वह तीर्थ है जहाँ सभीं प्रश्नों के समाधान हैं / काशी और कैलाश , दो ऐसे स्थान हैं जहाँ की ऊर्जा साधकों को अपनी ओर खीचती रहती है और दोनों तीर्थों का सम्बन्ध शिव से हैं /
काशी,  काश शब्द से बना है जो एक आर्य - प्रजाति हुआ करती थी / सिंध घाटी की सभ्यता से काशी और अयोध्या का सीधा सम्बन्ध है लेकिन अभी तक शोध कर्ता इस बिषय को अपनें शोध का बिषय नहीं बना सके हैं / काशी वह तीर्थ है जहाँ न दिन होता है न रात और जिनको  वहाँ दिन - रात दिखता है ,  वे काशी में रह कर भी काशी से दूर हैं / आज का काशी उस शिव नगरी काशी का द्वार है जहाँ निराकार शिव की ऊर्जा एक वर्तुल में एक चक्र की भांति गतिमान रहती है और जो समयातीत है / काशी ; शिव की काशी,  जहाँ शिव - ऊर्जा के अलावा और कुछ नहीं , वह तीर्थ उनको दिखता है जो -----
काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य एवं अहँकार को गंगा में प्रवाहित करके परम ज्योतिर्लिंगम काशी विश्वनाथ के पास खीचे चले जाते हैं / वह जिसको परम ज्योति दिख जाती है वे ऐसे हो उठाते हैं जैसे एक कस्तूरी मृग / 
क्रमशः .......[  अगले अंक में ]

==== ओम् ==== 



Wednesday, December 19, 2012

आदि गुरु नानकजी साहिब की परम पवित्र यात्रा - ii

लाहौर से अमरकंटक ----

अमरकंटक वह परम पवित्र तीर्थ है जहाँ ----

[क] आदि गुरु श्री नानकजी साहिब [ 1469 - 1539 CE ] और ....
[ख] कबीर जी साहिब [ 1398 - 1518 CE ]
दोनों परम प्राप्त सिद्ध योगियों की आपस में मूक वार्ता हुयी थी /
अदि गुरूजी साहिब और कबीर जी साहिब दोनों इस भारत धरती पर एक साथ लगभग 50 वर्षों तक अपनी - अपनी ऊर्जा को बाटते रहे /
अमरकंटक 1000 मीटर समुद्र तल से ऊँचा है और यह वह स्थान है जहाँ ---
* सतपुरा पहाड़
* विंध्याचल पहाड़ मिलाते हैं , और
जहाँ से ....
[1] नर्वदा
[2] सोन
[3] जोहिला एवं ...
[4] अमदोह [ Amadoh ]
चार नदियाँ जन्म लेती हैं /
सतपुरा और विन्ध्य पर्वत जहाँ मिलते हैं वह मैकल पहाडियों के नाम से जाना जाता है /
अमरकंटक और काशी , इस पृथ्वी पर मात्र दो ऐसे स्थान हैं जहाँ एक निराकार शिव ऊर्जा हजार साकार शिव लिंगों के रूप में प्रकट होती है : इस बात को समझना चाहिए -----
काशी क्षेत्र एवं अमरकंटक क्षेत्र , दोनों शिव से सम्बंधित हैं और दोनों ही क्षेत्रों में एक हजार शिव लिंगों के होनें की बात हमारे शास्त्र कहते हैं /
अमरकंटक से सोन नदी पूर्व की यात्रा पर निकलती है और नर्मदा पश्चिम की यात्रा पर /
नर्मदा की उम्र 150 million years गंगा से अधिक है अर्थात नर्मदा नदी गंगा से काफी अधिक बुजुर्ग नदी है / नर्मदा नदी जबलपुर पहुँच कर जिसकी उचाई 400 m. समुद्र तल से है , वहाँ के मार्बल के पहाड़ को चीरती हुयी गुजरात की ओर यात्रा करती है / जबलपुर में आप उस दृश्य को देखें जहाँ मार्बल जैसे कठोर को नर्मदा का पानी किस तरह से काट रहा है / जैसे नर्मदा का तरल पानी मार्बल के कठोरता को समाप्त करता है ठीक उसी तरह आदि गुरु श्री नानकजी साहिब एवं कबीर जी साहिब के बचन मनुष्य के अहँकार को समाप्त करते हैं /

आप कुछ घडी एकांत में बैठ कर सोचना कि -----

अमरकंटक में कबीर जी साहिब और नानक जी साहिब अपनी मूक भाषा में किस ऊर्जा का आदान - प्रदान किया होगा ?

=== एक ओंकार सत् नाम =====


Monday, December 10, 2012

आदि श्री सत् गुरु नानक जी की परम पवित्र यात्रा


आदि गुरु श्री नानक जी साहिब , पंजाब से जेरुसलम तक , मथुरा से द्वारिका तक एवं काशी से काबा तक की धरती पर अपनीं परम प्रीति को गाते रहे और इस में उनका साथ दिया भक्त मरदाना / मीरा कन्यैया के परम प्रीति में मथुरा से द्वारका तक नाचती रहीं ; कभी प्यार में नाचती तो कभीं वियोग में / कबीरजी साहिब शिव नगरी काशी में राम केंद्रित बैठे - बैठे वहाँ के पंडितों के अहंकार पर हथौड़ा मारते रहे , भक्तों की अपनी - अपनी अलमस्ती होती है और वे अपनी इस मस्ती को किसी भी तरह अपनें से जुदा नहीं होनें देते / भक्त जब प्रभु से जुद्तःई तब नाचता है , गाता है और जब उसके तार प्रभु से टूटते से दिखाते हैं तब वह वियोग – भक्ति में वियोग का मजा लेता है लेकिन देखनें वाले उसे दुखी समझते हैं और उसे पहचानने में भ्रमित हो कर चूक जाते हैं , हाँथ आये हीरे को खो देते हैं /
क्या आप कभी सोचते हैं , नानक जी पंजाब से काबा तक की यात्रा क्यों की ?
सिद्ध योगी यात्रा नहीं करते उनको प्राचीनतम सिद्ध योगियों के क्षेत्र चुम्बक की भांति अपनी ओर
खीचते हैं / जहां भूत काल में सिद्ध - योगी लोग तप , जप और ध्यान किये हुए होते हैं , वह क्षेत्र उनकी उर्जाओं से परिपूर्ण हो गया होता है लेकिन भोगी लोग ऐसे परम पवित्र क्षेत्रों की निर्विकार ऊर्जा के ऊपर विकार ऊर्जा की चादर डालते रहते हैं , फल स्वरुप ऐसे क्षेत्र आनें वाले खोजिओं के ऊपर कोई गहरा प्रभाव नहीं डाल पाते । परम पवित्र क्षेत्र सिद्ध योगियों को अपनी ओर खीचते रहते हैं , जैसे - जैसे कोई योग – सिद्धि में पहुँचता है , वह किसी न किसी तपो भूमि के खिचाव में आ ही जाता है और वह सिद्ध योगी वहाँ जा कर उस क्षेत्र को चार्ज करता है / आदि गुरु नानक जी की काशी से कर्बला , पुरी से काबा तक की जो यात्राएं की वह उनकी तपस्या का अब्यक्त , अचिंतनीय लक्ष्य था जिसको वे भी न जानते रहे होंगे / कर्बला से जेरूसलम , जेरूसलम से काबा तक की यात्रा का जो मार्ग है वह शूफी फकीरों का मार्ग है और नानकी साहिब जहां पैदा हुए वह भूमी शूफी फकीरों की भूमि है / इस मार्ग पर अदृश्य प्राचीनतम एवं अनेक रहस्यों से भरा शूफियों का परम तीर्थ अलकूफा भी है / अलकूफा की खोज हजारों साल से की जा रही है लेकिन अभीं तक किसी को मिल नहीं पाया है / शूफी परम्परा इस्लाम से बहुत प्राचीन है और अरब के शूफी फकीर कुछ – कुछ ऐसे दिखते हैं जैसे भारत में नागा साधू दिखते हैं /
आदि गुरु नानकजी साहिब एक सिद्ध शूफी फकीर थे / कहते हैं , अलकूफा सिद्ध शूफी संतों की आत्माओं की बस्ती है जो ऐसे लोगों को अपनी ओर खीचती रहती है जिनकी ऊर्जा उस क्षेत्र के अनुकूल होती है / जो लोग बुद्धि स्तर पर अलकूफा को खोज रहे हैं वे तो पहले पहुँच नहीं पाते और यदि पहुँच भी गए तो वहाँ से वापिस आनें पर वहाँ के बारे में बतानें लायक नहीं होते / अलकूफा हजारों सालो से एक रहस्य है और रहस्य ही रहेगा / अलकूफा पहुँचते हैं श्री गुरु नानक जी साहिब जैसे फकीर जो निर्गुण निराकार के साकार रूप होते
हैं / कर्बला हुसेन साहिब की जगह है और अलकुफा के क्षेत्र में पड़ता है जो सूफी फकीरों की आत्माओं का अति सघन क्षेत्र है । नानक जी ईराक में जिस मार्ग से गुजरे हैं वह भाग बैबीलोंन - सुमेरु सभ्यता का क्षेत्र है जहां से ज्योतिष - गणित का जन्म हुआ है । मक्का , मदीना एवं जेरुसलेम मोहम्मद साहिब , जेसस क्राइस्ट एवं मूसा जी [ मोजेस ] का क्षेत्र है जो दुनियाँ का प्राचीनतम सभ्यता का क्षेत्र है /

आदि गुरू नानकजी अपनी पूरी यात्रा में जब काशी पहुचे , कबीर जी साहिब उनका स्वागत किया ; कहते हैं श्री नानक जी साहिब तीन दिन कबीर जी के साथ रहे लेकिन उन दो महान भक्तो में कोई वार्ता न हुयी , दोनों मौन की वार्ता करते रहे , एक दूसरे को देते और लेते रहे लेकिन कबीर जी साहिब के शिष्यों को बड़ी मायूसी हुयी / कहते हैं जब नानक जी साहिब जानें लगे तब दोनों परम पवित्र भक्त गले मिले और दोनों की आँखें भर आयी और नानक जी आगे पुरी के लिए प्रस्थान किया और कबीरजी साहिब अपनी कुटिया में वापिस आ गए / कितना प्यारा दृश्य रहा होगा जब तो आत्माएं आपस में गले मिली होंगी / कबीर जी के भक्तों ने पूछा , गुरु जी आप लोगों में कोई वार्ता क्यों न हुयी , हम सब इस इन्तजार में थे की दो गुरु जब आमानें - सामनें होंगे तो उनके मध्य हो वार्ता होगी उस से हम सब को भी आनंद आएगा लेकिन ऐसा हो न पाया , आखिर कारण क्या था ? कबीर जी मुस्कुराए और बोले , बेटे ! वार्ता तो हुयी लेकिन तुम न सुन सके तो मैं क्या करूँ ? जो उनको मुझे बताना था , बताया और जो मिझे उनको देना था वह मैंनें उन्हें दिया , बश और क्या होना था ?
भारत भूमि पर काशी , द्वारका , अयोध्या , मथुरा , उज्जैन , हरिद्वार और काँची सात परम तीर्थ हैं जिनमें
काशी को सर्वोच्च स्थान मीला हुआ है / भारत मे चार आदि शक्ति पीठ हैं ; जगन्नाथ पूरी ,
बरहम पुर ओडिसा , कामाक्ष्या [ गुवाहाटी के पास ] , दक्षिणेश्वर कोलकता और 52 शक्ति पीठ है
जिनमें काशी भी एक है / भारत में 11 ज्योतिर्लिंगम हैं जिनमें से एक काशी में काशी
विश्वनाथ मंदिर के अंदर है / काशी मे शूफी फकीरों की आत्माओं से बनाया गया एक मस्जिद भी है जिसके
सम्बन्ध में कहा जाता है की अरब से आ कर शूफी फकीरों की आत्माएं इस मस्जिद का निर्माण किया है /
भारत भूमि पर गुरु वानियों को गुनगुनाते हुए आप अमृतसर - हरमंदर साहिब से काशी तक की यात्रा करें
हो सकता है आप को रास्ते में कहीं आदि गुरु नानक जी साहिब का दर्शन हो जाए । गुरु आप के साथ हर पल है , गुरू की निगाह हर पल आप पर होती है , लेकिन क्या आप उसे देखना चाहते भी हैं मिलना चाहते भी हैं ? क्या कभीं उसे प्यार से पुकारते भी हैं ? कभीं किसी गुरु द्वारा के किसी एकांत जगह में कुछ घडी बैठ कर इमानदारी से इन बातों पर सोचना , हो न हो वहाँ आप को कोई छाया नज़र आ जाए और आप का तन – मन गुरु की ऊर्जा से भर जाए 

एक ओंकार सत् नाम //


Tuesday, December 4, 2012

श्री ग्रन्थ साहिब जी को आप अपना सकते हैं


    ग्रन्थ साहिब उनके लिए है -----

  • जिनमें भक्ति की धुन उठ रही हो
  • जो परम में अपनें को घुलानें को बेताब हो रहे हों
  • जो गुरु की वाणियों में परम धाम का मार्ग देख रहे हों
  • जो तन , मन एवं बुद्धि से पूर्ण रूप से गुरु को समर्पित हों
  • जो जागते सोते गुरु को ही देखते हो
  • और जिसको गुरु के रूप में गोविन्द नज़र आते हों
    नानकजी साहिब कहते हैं , पंचा का गुरु केवल ध्यानु 

    श्री नानकजी साहिब ध्यान को गुरु बता रहे हैं कहते हैं तुम  ध्यान को अपना गुरु बनाओ , आखिर ध्यान है क्या?---
    मनुष्य जो भी करता है उसका सम्बन्ध उसके इंद्रियों मन एवं बुद्धि से होता है लेकिन ध्यान से इन्द्रियाँ , मन एवं बुद्धि में बह रही ऊर्जा का रूपांतरण होता है वह ऊर्जा जिससे हम स्वयं को कर्ता देखते थे वही ऊर्जा अब हमें  द्रष्टा बना देती है और यह जता देती है कि हम कर्ता नहीं करता पुरुष तो वह है हम तो मात्र एक माध्यम हैं
    =एक ओंकार सतनाम    ?