Monday, June 18, 2012

गरुण पुराण अध्याय दस भाग चार

आइये देखते हैं गरुण पुराण अध्याय दस के चौथे भाग की झांकी

यहाँ प्रभु गरुण जी को बता रहे हैं:-------

  • दाह के बाद स्त्रियों को पहले स्नान करना चाहिए

  • तिल के बीज से जलांजलि देनी चाहिए

  • दाह के दिन घर में भोजन नहीं बनाना चाहिए अन्यत्र कहीं से भोजन मगवायें

  • जिस स्थान पर मृत्यु हुयी हो उस स्थान पर बारह दिन तक दक्षिण दिशा में दीपक जलायें

  • दीपक कभीं बुझाना नहीं चाहिए

  • नजदीकी किसी चौराहे पर तीन दिन तक नित्य सूर्यास्त के बाद जल एवं दूध किसी पात्र में रखना चाहिए और मन्त्र के माध्यम से प्रेत को संबोधित करना चाहिए कि आप श्मशान की अग्नि से जले हो , अपनों से जुदा हुए हो , लो पानी से स्नान करो और दूध पीयो

  • दाह के तीन दिन बाद अस्थियों को एकत्रित करें

  • अस्थियों को इकट्ठा करनें के पहले चिता की अग्नि को दूध – जल से शान्त करें

  • हड्डियों को ढाक के पत्तों पर रखें

  • वामावर्त हो कर तीन बार परिक्रमा करें

  • ययायत्वा मन्त्र का मनन करते रहें

  • हद्धियों को दूध एवं जल से धो कर मिटटी के पात्र में रखें

  • तिकोना मंडल बनाएँ , गोबर से लीपें दक्षिणाभिमुख हो कर तीन दिशाओं में पिण्ड दान करें

आगे अगले अंक में भाग पांच को देखा जाएगा

आज इतना ही

=====ओम्======



Sunday, June 17, 2012

गरुण पुराण अध्याय दस भाग तीन

गरुण पुराण अध्याय दस भाग तीन में देखते हैं विष्णु भगवान गरुण जी को क्या उपदेश दे रहे हैं /

सती के सम्बन्ध में

  • गर्भवती स्त्री को सात नहीं होना चाहिए

  • सती स्वर्ग में चौदह इन्द्रों के राज्य काल तक अपनें पति के साथ रमण करती है

  • स्वर्ग में अपसराओं के द्वारा पूजित होती है

  • पिता एवं पति दोनों के कुल को पवित्र करती है

  • साढ़े तीन करोड सालों तक सती स्वर्ग में अपनें पति के साथ रमण करती है

  • मनुष्य के देह में साढ़े तीन करोड रोम होते हैं

    सती की तैयारी

  • पति के साथ ही पत्नी का भी दाह एक साथ होता है

  • सती हो रही स्त्री को घर पर स्नान करना चाहिए

  • वस्त्र एवं आभूषणों से स्वयं को नवविवाहिता की तरह सजाना चाहिए

  • नारियल के साथ मंदिर जा कर पूजन करना चाहिए

  • मंदिर में अपनें आभूषणों को छोड़ देना चाहिए

  • नारियल को ले कर श्मशान जाना चाहिए

  • सती को अपनें पति के साथ चिता में बैठना चाहिए और उसकी गोदी में पति का सिर रहे

  • चिता में बैठते समय चिता की परिक्रमा करे और सूर्य को नमस्कार करे

  • चिता में अग्नि लगानें के लिए उसे आदेश देना चाहिते

  • आधा देह जलानें के बाद कपाल क्रिया कहते हैं

    कपाल क्रिया

  • बॉस से पति के सिर को तोडना चाहिए और सती के सिर को नारियल से

    अगले अंक में भाग चार को देखा जायेगा , अभी इतना ही

===== ओम्=======





Saturday, June 9, 2012

गरुण पुराण अध्याय दस भाग दो

गरुण पुराण अध्याय दस भाग दो में प्रभु दाह संस्कार के सम्बन्ध में निम्न बातों को श्री गरुण जी को बता रहे हैं : ---------

  • दाह - संस्कार करना की जगह को गाय के गोबर से पोतना चाहिए

  • उस स्थान पर बेदी बनाएँ

  • बेदी पर कुशा को अनामिका एवं अंगूठे से पकड़ कर तीन रेखाएं खींचें

  • रेखाओं के मध्य भाग से मिटटी को निकालें

  • जहाँ से मिटटी निकाली जा रही हो उन स्थानों में अग्नि की स्थापना करें

  • क्रब्यादसंज्ञक देवता का विधि पुर्बक पूजन करें

  • पूजन में लोमभ्यः स्वाहा , त्वग्भ्य : स्वाहा , मज्जभ्यः स्वाहा आदि मन्त्रों से होम करना चाहिए

  • फिर प्रार्थना करनी चाहिए कि हे देव ! आप भूतों के पालक हैं , जगत की योनि हो , आप इस प्रेत को स्वर्ग भेजें

  • फिर चन्दन,पलास,पीपल तुलसी की लकडियों स चिता तैयार करें

  • चिता पर मृतक को रखें

  • एक पिण्ड मृतक के सीनें पर और एक पिण्ड दाहिनें हाँथ पर रखें

  • दोनों पिंडों को देते समय अमुक प्रेत नाम संबोधन करें

  • फिर पुत्र को अग्नि देनी चाहिए

  • पंचकों में दाह संस्कार नहीं करना चाहिए

  • अर्ध घनिष्ठा नक्षत्र से रेवती नक्षत्र तक पांच नक्षत्रों में दाह संस्कार करना अशुभ होता है

  • यदि पंचकों में दाह करना हो तो------

  • कुशा के चार पुतले बनाएँ

  • पुतलों को मृतक के साथ रखें

  • नक्षत्रों के मन्त्रों से एवं प्रेताजायत मन्त्र के माध्यम से मृतक के नाम के साथ हवन करें

  • फिर दाह संस्कार करें

कुछ और बातों को अगले अंक में देखें

आज इतना ही

====ओम्======








Friday, June 1, 2012

गरुण पुराण अध्याय दस भाग एक

गरुण पुराण अध्याय – 10 का प्रारम्भ गरुण जी के निम्न प्रश्न से हो रहा है ---------

श्री गरुण जी पूछ रहे हैं ….....

हे प्रभु ! आप कृपया मुझे मनुष्य के शरीर – दाह का बिधान बताएं और यदि उसकी पत्नी सती हो तो उस सती की महिमा भी बताएं /

दाह संस्कार से सम्बंधित गरुण पुराण में दी गयी बातें-----

  • या तो सबसे बढ़े पुत्र या सबसे छोटे पुत्र द्वारा पिता - माँ के देह का दाह संस्कार होना चाहिए

  • दाह संस्कार करनें से पुत्र को पितृ - ऋण से मुक्ति मिलती है

  • पिता के मौत के ठीक बाद सभीं पुत्रों द्वारा सर – मुंडन करवाना चाहिए

  • नाखून एवं बगल के बालों को नहीं कटवाना चाहिए

  • साफ़ – धुले वस्त्र को धारण करें

  • मृतक को स्नान करानें

  • मृतक को प्रेत शब्द से संबोधन करते हैं

  • मृतक के मस्तक पर गंगा जी की मिटटी का लेप करें

  • अमुक नाम प्रेत संबोधन से उसका पिण्ड दान करें

  • पुनः द्वार पर उसका पिण्ड दान करें

  • द्वार पर प्रेत का पूजन करें

  • अर्थी को कंधा दे कर श्मशान ले जाएँ

  • अर्थी को कंधा देनें से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है

  • घर एवं श्मशान के मध्य पहुंचनें पर उस स्थान पर रुके

  • उस स्थान को साफ़ करके गौ के गोबर से लेप करें

  • यहाँ प्रेत को विश्राम कराएं

  • यहाँ पुनः पिण्ड दान देन

  • श्मशान में प्रेत का सर उत्तर दिशा में रखना चाहिए

अगले अंक में आगे की बातें मिलेंगी

===== ओम्======