Friday, March 30, 2012

गरुण पुराण अध्याय चार का आखिरी भाग

  • नरक में पहुंचे पापी जीवों को महाप्रलय तक नरक में यातनाओं को भोगना होता है

    और

  • प्रलय के बाद भी वे पुनः नरक में ही उत्पन्न होते हैं

  • नरक वासियों को यमराज की आज्ञा से पुनः पृथ्वी पर स्थावर आदि की योनियों

    में पैदा होना होता है

  • स्थावर – योनि में अचल सूचनाएं आती हैं जैसे बृक्ष , गुल्म , लता , बेल . पर्वत आदि /

  • पापी जीव धीरे-धीरे एक के बाद एक योनियों के गुजरता हुआ चौरासी लाख योनियों को पार करके मनुष्य की योनि में आता है/

गरुण पुराण अध्याय चार का समापन

====ओम्====


Wednesday, March 28, 2012

गरुण पुराण अध्याय - 04 भाग दो

गरुण जी अध्याय के प्रारम्भ में पूछा था कि कैसे लोग नरक की यात्रा करते हैं ? प्रभु इस सम्बन्ध में जो बातें कही हैं उनको आप यहाँ देख रहे हैं और अब आगे -------

  • वैश्य वह जो चर्म का काम करे

  • स्त्रियाँ जो वैश्या का कर्म करें

  • बिष के ब्यापारी

  • अनाथ को सतानें वाले

  • निरपराधी को दंड देने वाले

  • ऐसे घनवान जो गरीबों को भोजन न दे सके

  • दया भाव की कमी वाले लोग

  • नियमों को धारण करके नियमों को तोड्नें वाले

  • मोक्ष दिलानें वाले गुरु का जो सत्कार न करे

  • पुराण वाचकों की जो आदर न करे

  • प्रीति को तोड़ने वाले

  • मित्रता को खंडित करने वाले

  • तीर्थ यात्रा , विवाह एवं शुभ कर्मों में जो लूटता हो

  • घर , गाँव , बन में आग लगाने वाले

ऐसे लोग नरक की यात्रा करते हैं//

घर , गाँव एवं बन में आग लगानें वालों को यम दूत अग्नि कुण्ड में पकाते हैं , ऐसे जंगल में ले जाते हैं जहाँ पेड़ों के पत्ते तलवार जैसे धार वाले होते है और इन पत्तों से उस पापी के अंग कटते हैं और वह चिल्लाता रहता है / ऐसे पापी जब प्यास बुझानें के लिए पानी मागते है तब उनको गर्म तेल दिया जाता है /

अध्याय चार का तीसरा भाग अगले अंक में देखा जा सकता है

====ओम्======




Monday, March 26, 2012

गरुण पुराण अध्याय चार भाग एक

गरुण जी का तीसरा प्रश्न

हे प्रभु ! आप मुझे यह बतानें की कृपा करें कि मनुष्य किम – किन कर्मों के कारण यम मार्ग से यात्रा करते हुए वैतरणी नदी में गिरता है और बिभिन्न नरकों से गुजरता है ?

प्रभु कहते हैं

शुभ कर्मों के निंदक नरक गामी होते हैं और प्रभु आगे बताते हैं …....

यमपुर में प्रवेश के चार द्वार हैं पूर्व , पश्चिम एवं उत्तर द्वारों से धर्मात्मा प्राणी प्रवेश करते हैं और दक्षिण द्वार पापियों के लिए बना हुआ है / दक्षिण द्वार से जो प्रवेश करते हैं उनको वैतरणी नदी पार करनी होती है /

ब्राह्मण की हत्या करनें वाले,शराब पीनें वाले,गो हत्या करनें वाले,बाल हत्यारे,स्त्री हत्या करनें

वाले,छिपकर पाप करनें वाले,विश्वासघाती,घन की चोरी करनें वाले,कर्ज ले कर उसको वापिस न करनें वाले,निंदक,माँ-पिता,गुरु एवं आचार्यों का अपमान करनें वाले,ब्राहमण हो कर घी,तेल जैसे पदार्थों का ब्यापार करनें वाले,ब्राहमण हो कर जी संध्या,पूजा एवं पथ नहीं करता,शुद्र जो वेद पढता हो,शुद्र जो ब्राहमण स्त्री के संग ब्याह रचाता हो,वह जो राजा की रानी को चाहता हो,ऐसे लोग नरक की यात्रा करते हैं/

आगे का विस्तार अगले अंक में

====ओम्==========










Saturday, March 24, 2012

गरुण पुराण अध्याय तीन का आखिरी भाग

श्री विष्णु भगवान श्री गरुण जी को आगे बताते हैं --------

  • धर्म राज एक बिशाल भैसे के ऊपर आसीन रहते हैं

  • उनकी बत्तीस भुजाओं में शस्त्र रहते हैं

  • उनकामुख,नासिका एवं अन्य अंग भयानक होते हैं

चित्र गुप्त जो स्वयं भयानक शरीर वाले हैं , धर्म राज के साथ होते हैं और उनके साथ होते हैं ज्वर रोग एवं मृत्यु / अब इस स्थिति में चित्र गुप्त अपना निर्णय सुनाते हुए कहते हैं … ......

अरे दुराचारी पापी तुम धन इकट्ठा करने में लगे रहे , पापी लोगों की संगत की , प्रसन्नता से पाप किया और अब तूं इन कर्मों के फल के रूप में यहाँ की यातनाओं को भोग / धर्म राज की आज्ञा के अनुकूल प्रचंड और चंडक यमदूत उस पापी को नरक में पहुंचाते हैं / नरक में एक पांच योजन चौड़ा एवं एक योजन ऊँचा बृक्ष है जिसे जलती हुयी अग्नि का बृक्ष कह सकते हैं / यमदूत उस बृक्ष से बाँध कर पिटाई करते हैं / यम दूत उस पापी के अतीत में किये गए पापों को बताते हुए उसे खूब पीटते हैं / पीटाई के समय शालमली बृक्ष के पत्ते जो गिरते रहते हैं वे उस पापी के देह में सूई की भांति छेड़ करते रहते हैं /

नरक चौरासी लाख प्रकार के हैं जिनमें से कुछ के नाम कुछ इस प्रकार से हैं … ....

तामिस्र , लौह्शंक , महारौरव , शाल्मली , रौरव , कुडमल , काकोल , सविस , संजीवन महापथ , अविची , तपन आदि / इन नरकों में नाना प्रकार के किये गए कर्मों को भोगना होता है / यहाँ इन नरकों में पापी कल्पों तक भोगता रहता है और जब सभीं यातनाएं भोग लेता है तब अंत में वह बिषय – वासना भोग [ स्त्री - पुरुष सह्बास ] के लिए अन्धतामिस्त्र , रौरव , आदि नरकों में जाता है / अब हम अगले अंक में अध्याय – 04 के प्रसंगों को देखेंगे /


======ओम्======



Thursday, March 22, 2012

गरुण पुराण अध्याय तीन भाग एक

गरुणपुराण में अध्याय तीन का प्रारम्भ गरुण जी के प्रश्न से होता है, प्रश्न है------

हे भगवान!जीव यम – मार्ग को पार करके जब यमलोक में पहुँचता है तब उसको कैसी-कैसी यातनाएं मिलती हैं?

प्रश्न के उत्तर में श्री विष्णु भगवान कहते हैं ----------

बहुभीतिपुर से आगे 44 योजन पर यम पुर है यम दूत जीव को ले कर यमपुरी के द्वार पर पहुंचते हैं वे द्वारपाल को सूचना देते हैं कि पापी जीव को वे ले कर आये हैं / द्वारपाल उनको चित्रगुप्त के पास भेज देता है जिनके पास उस पापी जीव के कर्मों का लेखा जोखा होता है / श्रवण लोग एवं उनकी पत्नियां श्रवणी जो ब्रह्मा जी के पुत्र – पुत्र बधू हैं हर पल सभी लोको में भ्रमण करते रहते हैं और हर जीव के कर्मों के लेखा जोखा का हिसाब रखते हैं / चित्र गुप्त जी पाप जीव के कर्मों को जानते हुए भी श्रवण लोगों से पूछते हैं और अपनें पास की सूचनाओं एवं श्रवण लोगों द्वारा प्राप्त सभीं सूचनाओं को वे यम को देते हैं जब कि यम को भी उस जीव के कर्मों का लेखा - जोखा पहले से ही मालूम रहता है /

यहाँ इस बात को एक बार फिर समझ लें--------

मृत्यु लोक में मनुष्य जो भी करता है जैसे भी करता है जहाँ भी करता है उसकी सम्पूर्ण सूचना,श्रवण एवं उनकी पत्नियों को मिलती रहती हैं,यम दूतों को मिलती रहती हैं,चित्र गुप्त को मिलती रहती हैं,सभी देवताओं को मिलती रखती हैं और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जितनी भी सूचनाएं हैं उन सबको मालूम रहता है कि जीव मृत्यु लोक में क्या कर रहा है?

वैज्ञानिक दृष्टि से यदि देखें तो हमें यह मालूम होना चहिये की सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में वह कौन सा माध्यम है जो सबको जोड़ कर रहता है ? इस सम्बन्ध में आप गीता श्लोक 7.7 को देख सकते हैः जो इस प्रकार है ------

मत्तः परतरं नान्यत्किंचिदस्ति धनञ्जय

मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव


प्रभु कह रहे हैं,सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सभीं सूचनाए एक माले की मणियों जैसी हैं जिनको जोडनें वाला मूल सूत्र मैं हूँ/इस बात कोC.G. JUNG Cosmic mindके रूप में ब्यक्त करते हैं/

[ ] एक घटना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक कौन सा माध्यम पहुचाता है ?

[ ] उस घटना को वह किस माध्यम से समझता है ?

इन दो बातों को आप अपनें ध्यान का विषय बन सकते हैं

श्रवण एवं उनकी पत्नियां जो ब्रह्मा जी के पुत्र एवं पुत्र बधू हैं , सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सूचनाओं को एकत्रित करते रहते हैं ; श्रवण का अर्थ है सुनना और सुना जाता है कानों से और सभीं सुनी जा रही बाते सच नहीं भी हो सकती लेकिन यह सिद्धांत मनुष्य के कानों के लिए तो ठीक है पर श्रवण के कान जो भी सुनते हैं वह सत् ही होता है , ऐसा क्यों है ? गुणों के प्रभाव में जो काम इन्द्रियाँ करती हैं उनका सत् से सम्बन्ध न के बराबर होता है लेकिन द्रष्टा की इन्द्रिया जो भी करती हैं वह सत् ही होता है /




Tuesday, March 20, 2012

गरुण पुराण अध्याय दो का समापन

छठें महीनें जीव वैतरणी नदी पार करता है और जो पार करानें वाले हैं वे पूछते हैं - क्या तुमनें कोई अच्छे काम किये हैं ? सातवे महीनें जीव ब्रह्वापद नगर में पहुंचता है जहाँ श्राद्ध को खा कर आगे

दुखद पुर पहुँचता है जहाँ आठवें माह का पिंडदान खा कर कुछ समय विश्राम करनें के बाद आगे की नानकन्दपुरनौवें माह की समाप्ति तक पहुँच जाता है / यहाँ नाना प्रकार के भूत – प्रेत उस जीव को भयभीत करते हैं और यमदूत उसे फिर सुतप्त भवन ले जाते हैं / दसवें माह सुतप्त भवन और ग्यारहवें माह में रोद्र नगर और ग्यारहवें माँह के मध्य तक वह पयोवर्षणपुर पहुँचता है / यहाँ ऐसे मेध बरसते हैं जो जीव के अंदर सघन दर्द एवं भय पैदा करते हैं / यहाँ से आगे आता है शीताढ्य नगर जहाँ हिमालय से सौ गुना अधिक ठंढ पड़ती है / वहाँ दसों दिशाओं में वह जीव देखता है इस उम्मीद से कि शायद कोई उसका अपना मिले और उसे इस भयानक ठंढ से बचाए पार ऐसा होता नहीं / बारहवें माह का पिण्ड दान प्राप्त करके वह जीव यमपुर के समीप नगर बहुभीति पहुँचता है / यहाँ उसे जो एक हाँथ लंबा शरीर मिला हुआ होता है त्यागना होता है

धर्म राज पूरी के चार द्वार हैं जिनमें से अभीं तक जो कुछ भी बताया गया है उसका सम्बन्ध दक्षिण द्वार से है जहाँ से पापी यमपुरी में प्रवेश करता है /

गरुण पुराण अध्याय – 02 यहाँ समाप्त होता है , तीसरा अध्याय आप को आगे मिलेगा लेकिन ------

यहाँ तक की यात्रा के सम्बन्ध में दो बातें-----------

  • माँ के गर्भ में जीव भय में रहता है

  • जीव का जीवन भय में गुजरता है

  • प्राण भी भय में निकलता है

और

यमदूत उसे भय में डुबो कर यमपुरी की यात्रा करते हैं लेकिन पुनः जब वही जीव मृत्यु लोक में गर्भ में आता है तब क्या उसमें भय नहीं रहता?

==== ओम्=======


Sunday, March 18, 2012

गरुणपुराण अध्याय दो भाग तीन

एक हाँथ का प्रेत [ मृतक के मरनें के बाद बना शरीर ] सौम्य पुर के बाद सारिपुर पहुंचता है जहाँ का राजा जंगम होता है / जंगम कुछ देखनें में इस प्रकार का होता है कि प्रेत उसे देख कर भय में डूब जाता है एवं सिकुड़ा हुआ प्रेत अपनी पीछली जिंदगी की स्मृतियों में पहुँच कर पछताता रहता है और यम दूत उसे उसकी स्मृतियों से बाहर नहीं निकलनें देते /

सारी पुर में वह प्रेत त्रिपाक्षिक श्राद्ध को ग्रहण करता है और अपनों की याद में डूबा तीसरे पड़ाव नगेन्द्र भवन कि ओर चल पड़ता है / नागेन्द्र भवन में एक घनघोर बन आता है जो इतना भयानक होता है कि वह प्रेत उसे देख कर रोने लगता है / प्रेत इस बन को दो माह में पार करता है / प्रेत तीसरे माह गंधर्वपुर पहुंचता है जहाँ उसे त्रैमासिक पिण्ड दान प्राप्त होता है / यहाँ के कष्टों को भोग कर प्रेत आगे शैलागमपुर पहुंचता है जहाँ उसे चौथे माह का पिण्ड दान मिलता है / पांचवे माह प्रेत क्रौचपुर पहुंचता है और यहाँ के दुःख को भोग कर वह आगे क्रूरपुर पहुंचता है जहाँ उसे छठें माह का पिण्ड दान मिलता है / क्रूरपुर के बाद का अगला पड़ाव होता है विचित्र भवन जहाँ का राजा यमराज का भाई विचित्र होता है / विचित्रपुर से बाहर निकलते ही वैतरणी नदी आती है जो सौ योजन विस्तार वाली है , जिसमे पानी नहीं पीव , रक्त , पेशाब एवं मल भरा होता है / इस नदी एन सुयी की नोक की भांति अति शूक्ष्म जीव होते हैं [ बैक्टीरिया जैसे ] जो प्रेत को काटते रहते हैं /

आगे का विस्तार अगले अंक में -------

====ओम्======


Wednesday, March 14, 2012

गरुण पुराण अध्याय दो भाग तीन

ओम् शांति ओम् के माध्यम से हम हिंदू पुराणों से परिचय कराना चाहते हैं और गरुण पुराण इस श्रृंखला का पहला कदम है,आप इन बातों कीलाइनों पर न सोचें अपितु लाइनों को देखते देखते दो लीनों के मध्य जो है उस पर अपनी उर्जा केंद्रित करें क्योंकि पुराणों से शब्दों के आधार पर कुछ नहीं मिलने वाला,हाँ पुराणों को पढ़ना एक ध्यान है जिसमें असत्य के माध्यम से सत्य की यात्रा हो सकती है/


गरुण पुराण के माध्यम से विष्णु भगवान श्री गरुण जी को बता रहे हैं------------

हे गरुण जी ! बैतरनी नदी एक सौ योजन चौडी है जिससे हो कर यम लोक जा रहे ब्यक्ति को गुजरना होता है / वैतरणी नदी के अंदर नाना प्रकार के दुखों को देनें के साधन उपलब्ध हैं जैसे सूई के नोक जैसे मुख वाले कीड़े जो चारों तरफ से काटते हैं , नदी में पानी नहीं उसकी जगह पीव – रक्त होते हैं और अनेक प्रकार के मांसाहारी जीव भी होते हैं जोकताते रहते हैं और उनके काटनें से जो पीड़ा होती है उसे उस ब्यक्ति को सहन करना होता है / बैतरनी नदी में पा रहे कष्टों से उस ब्यक्ति को बोध होता है और वह मन ही मन कहता है , बड़ी मेहनत के फल के रूप में हमें मनुष्य योनि मिली थी लेकिन उसे मैं ब्यर्थ में गवा दिया और वह कहता रहता है … .......

मैं कोई धर्म कार्य नहीं किया , कभी सत् पुरुषों की सेवा नहीं किया , कभीं गंगा स्नान नहीं किया , कभीं कोई कूप एवं जलाशय नहीं बनवाए , गौ की जीविका के लिए कभीं कोई साधन का निर्माण नहीं किया , न रामायण एवंम महाभारत की कथा को सुना , कभीं पुराणों को नहीं सुना , अपनें स्वामी की आज्ञा का पालन नहीं किया , कभी अथिति का सत्कार नहीं किया और इस प्रकार वायु के सामान तेज गति से चलता हुआ वह एक हाँथ का सजीव देह [ मृतक का ] सत्रह दिन की यात्रा के बाद अठारहवें दिन सौम्यपुर पहुंचाता है [ मृतक को सोलह पुरियों को पार करना होता है यम लोग पहुंचनें के लिए , उनमें से यह पहला पड़ाव है ] /

सौम्यपुर

यहाँ नाना प्रकार के प्रेत होते हैं

पुष्पभद्रा नदी होती है

वहाँ उसे अपने धन , परिवार का मोह सताता है और वह दुखी होता है और तब यमदूत कहते हैं , देखा तुमने कोई किसी का साथ देनें वाला नहीं सबको अपनें - अपने कर्मों को अंत में भोगना होता है और तूं भी भोग रहा है / सौम्यपुर में वह मृतक अपनें पुत्र – पौत्र द्वारा दिए गए मासिक श्राद्ध का भोजन करता है और फिर सौम्यपुर से आगे की यात्रा पर निकलता है /

अगला पड़ाव है सारिपुर जिसके सम्बन्ध में अगले अंक में देखेंगे---------


=====ओम्=======


Sunday, March 11, 2012

गरुण पुराण अध्याय दो भाग एक

गरुण पुराण अध्याय –02

गरुण जी भगवान विष्णु से जानना चाहते हैं-------

यमलोक का मार्ग कितना दुखदायी होता है?

भगवान विष्णु कह रहे हैं-----

  • भोजन,हवा,पानी एवं विश्रम के लिए कोई स्थान नहीं है,यम लोक की यात्रा में/

  • मार्ग में बारह सूर्य की गरमी का सामना करना पड़ता है/

  • बर्फ जैसी ठंढी हवाओं का सामना करना पड़ता है/

  • मार्ग में काटें उगे होते हैं/

  • विषधर सर्प एवं नाना प्रकार के अन्य विषैले जीवों के विष को सहन करना होता है /

  • घनघोर जंगलों से गुजरना होता है जो दो हजार योजन लंबा - चौड़ा होता है [ एक योजन = 16.4 km ] /

  • मार्ग में खून की , पत्थरों की , आग की और कहीं गर्म पानी की वर्षा होती रहती है /

  • कभी रक्त से भरे , कभीं पीव से भरे कभी विष्ठा से भरे कुंडों से गुजरना होता है /

  • वैतरणी नदी में सूई जैसी चुभन वाले बारीक कीड़े होते हैं जो काटते रहते हैं /

  • वैतरणी नदी में बहुत शालाव होते हैं जिनको पार करना कठिन काम होता है /

  • वैतरणी नदी पापियों के लिए निर्मित की गयी है जिसका आदि - अंत नहीं दिखता /

शेष अगले अंक में-----

==== ओम्======



Friday, March 9, 2012

सारांश गरुण पुराण अध्याय एक

हिंदू कर्म काण्ड के अंतर्गत मृतक के उस परिजन को [ जेष्ठ या सबसे छोटे पुत्र को ] जो दाह संस्कार करने के लिए मान्य होता है और दाह - संस्कार किया हुआ होता है उसे गरुण पुराण सुनाया जाता है / गरुण पुराण मृतक के परम शांति का द्वार खोलता है , ऎसी बात हमारे हिंदू मान्यता में कही गयी

है / मैं " ओम् शांति ओम् " के माध्यम से कुछ पुराणों एवं शास्त्रों की बातों को ब्यक्त कर रहा हूँ कुछ इस उमीद से कि जो लोग इनको पढ़ें उनको कहीं भ्रम न हो और यदि भ्रम में वे आते भी हैं तो वह भ्रम उनको सही मार्ग पर ले जा सके , आइये देखते हैं अध्याय – 01 के सार को /

  • श्री विष्णु भगवान के क्षेत्र नैमिषारण्य में शौनक ऋषियों द्वारा स्वर्ग प्राप्ति के लिए एक हजार साल तक चलानें वाले यज्ञ का आयोजन किया गया/

  • वहाँ एक दिन यज्ञोपरांत हवन के बाद सूतजी पधारे/

  • सौनक ऋषि गण यम मार्ग का वर्णन जानना चाहा/

  • सूत जी इस सम्बन्ध में उन बातों को बताना प्रारम्भ किया जिनको श्री विष्णु जी भगवान स्वयं गरुण जी को बताया था/

  • राजस् एवं तामस गुण धरी नरक की यात्रा करते हैं और नरक का मार्ग ही यम मार्ग है/

  • नरक वह जाता है जिसके प्राण जनन या मल – मूत्र योनि से निकलता है/

    दस दिन तक पुत्र द्वारा किये जा रहे पिण्ड – दान की गणित------

  • []प्रति दिन का पिण्ड दान के चार भाग हो जाते हैं …...

  • [-]दो भाग पञ्च-महाभूतों को मिलते हैं …..

  • [क – २]एक भाग यम – दूतों को मिलता है …..

  • [क – ३]एक भाग प्रेत को[मृतक को]मिलता है

  • [क – ४]दसवें दिन के पिण्ड से प्रेत का शरीर निर्मित होता है जिसकी लम्बाई एक फीट की होती है और वह चल – फिर सकता है,यह शरीर[प्रेत का]यमपुर में यातनाओं को भागानें जाता है/

[]दस दिनों में एक फीट का प्रेत कैसे निर्मित होता है?

  1. प्रथम दिन से सर , दूसरे दिन से कंधा , तीसरे दिन से ह्रदय , चौथे दिन से पीठ , पांचवे दिन से नाभि , छठवें दिन से कमर एवं नीचे का भाग , सातवें दिन से जंघा , आठवे दिन से जानु , नौवें दिन से पांव और दसवें दिन से भूख – प्यास एवं इंद्रिय जरूरतें पैदा होती हैं /

  2. यम मार्ग पहुंचनें के पहले सोलह पुरियों को पार करना होता है [ पूरी का अर्थ है राज्य ] /

  3. 247 योजन प्रति दिन की यात्रा कर के प्रेत 47 दिन की यात्रा के बाद यम पूरी [ नर्क लोक ] पहुंचता है /

  4. गरुण पुराण के अध्याय एक के सारांश के साथ यह अध्याय यही समाप्त होता है , आगे अध्याय दो प्रारम्भ होगा अगले अंक से -----

====ओम्========



Tuesday, March 6, 2012

गरुण पुराण अध्याय एक आखिरी भाग

गरुण पुराण अध्याय एक का आखिरी भाग

विष्णु भगवान गरुण जी को बता रहे हैं -----

मृतक का पुत्र दस दिन तक जो पिंड दान देता है उसकी गणित इस प्रकार से है … ...

प्रतिदिन का पिंड दान चार भागों में विभक्त हो जाता है कुछ इस प्रकार -----

दो भाग पञ्च महाभूतों को मिलता है , एक भाग यमदूतों को मिलता है और एक भाग मृतक को मिलता है /

पहले नौ दिनों के पिंड दान की गणित -----

पहले दिन के पिंड दान से सर एवं मस्तक बनता है

दूसरे दिन के दान से कंधा , तीसरे दिन के दान से ह्रदय , चौथे दिन से पीठ , पांचवे दिन से नाभि , छठवें दिन से कमर एवं उसके नीचे के अंग , सातवें दिन के दान से जंघा , आठवें दिन के दान से जांनू , नौवें दिन के दान से पाँव का निर्मा होता है और दसवें दिन के दान से देह में क्षुधा एवं तृष्णा का आगमन होता है / दस दिनों के पिंड दान से इस प्रकार एक फूट का एक आकृति बनती है जिसको नर्क में जाना होता है , वहा की यातनाओं को सहनें के लिए /

शेष अगले अक में -----

==== ओम् ======


Sunday, March 4, 2012

गरुण पुराण अध्याय एक अगला भाग

अध्याय एक के अगले अंश में प्रभु श्री विष्णु भगवान श्री गरुण जी को बता रहे हैं----------

हे गरुण!

यम दूत मृतक को नरक के बिभिन्न यातनाओं को दिखाते हैं और इस कार्य में99000 योजन की यात्रा करनी पड़ती है[ एक योजन= 16.4 Kms ] / वह जीव यम का दर्शन करता है और यम के आदेश से उसे पुनः मृत्यु लोक में ले आया जाता है/ मृत्यु लोक में उनके परिजन लोग जो भी कुछ मृतक के आत्मा की शांति के लिए जो भी कुछ करते हैं वह सब बेकार जाता है, वह आत्मा शांत नहीं हो पाता और पुनः यमलोक चला जाता है/

ऐसे मृतक जिनका पिंडदान आदि शास्त्रों के नियम से नहीं किया जाता वे एक कल्प प्रेत योनि में पड़े रहते हैं [ चार युगों को मिला कर एक कल्प होता है , ब्रह्मा का एक दिन = 1000 x चार युगों की अवधि , ब्रह्मा का दिन एवं रात बराबर समय के होते हैं , ब्रह्मा के दिन में जीव होते हैं और रात्रि के आगमन पर वे सभीं अब्यक्त में समा जाते हैं और पुनः जब दिन निकलता है तब सभीं जीव अपनें - अपनें मूल स्वरूपों में प्रगट हो जाते हैं - गीता श्लोक 8.16 , 8.17 ] /

आज इतना ही … ...


=====ओम्=========


गरुण पुराण अध्याय एक अगला भाग

अध्याय एक के अगले अंश में प्रभु श्री विष्णु भगवान श्री गरुण जी को बता रहे हैं----------

हे गरुण!

यम दूत मृतक को नरक के बिभिन्न यातनाओं को दिखाते हैं और इस कार्य में99000 योजन की यात्रा करनी पड़ती है[ एक योजन= 16.4 Kms ] / वह जीव यम का दर्शन करता है और यम के आदेश से उसे पुनः मृत्यु लोक में ले आया जाता है/ मृत्यु लोक में उनके परिजन लोग जो भी कुछ मृतक के आत्मा की शांति के लिए जो भी कुछ करते हैं वह सब बेकार जाता है, वह आत्मा शांत नहीं हो पाता और पुनः यमलोक चला जाता है/

ऐसे मृतक जिनका पिंडदान आदि शास्त्रों के नियम से नहीं किया जाता वे एक कल्प प्रेत योनि में पड़े रहते हैं [ चार युगों को मिला कर एक कल्प होता है , ब्रह्मा का एक दिन = 1000 x चार युगों की अवधि , ब्रह्मा का दिन एवं रात बराबर समय के होते हैं , ब्रह्मा के दिन में जीव होते हैं और रात्रि के आगमन पर वे सभीं अब्यक्त में समा जाते हैं और पुनः जब दिन निकलता है तब सभीं जीव अपनें - अपनें मूल स्वरूपों में प्रगट हो जाते हैं - गीता श्लोक 8.16 , 8.17 ] /

आज इतना ही … ...


=====ओम्=========


Thursday, March 1, 2012

गरुण पुराण अध्याय एक भाग चार

गरुण पुराण अध्याय –01के अगले प्रसंग में श्री विष्णु भगवान गरुण जी से कहते हैं--------

दो प्रकार के लोग हैं और दोनों का प्राण अपने - अपने ढंग से बाहर निकलता है / ऐसे लोग जिनके जीवन का केंद्र प्रभु होते हैं , वे जो भी करते है वह प्रभु के लिए होता है और जो भी पाते हैं उसे प्रभु का प्रसाद समझते हैं है ऐसे लोग गुणातीत योगी होते हैं / गुणातीत योगी अपने मौत का भी द्रष्टा होता है और समभाव में वह उस क्रिया का द्रष्टा बन रहता है जो आखिरी वक्त घटित होती है / दूसरे प्राणी ऐसे होते हैं जिनके जीवन का केंद्र काम – भोग रहा होता है ऐसे लोग मरना नहीं चाहते , उनका प्राण कठिन संघर्ष के बाद मल या मूत्र के मार्गसे बाहर निकलता है / दैवी प्रकृति के लोगों के लिए मौत एक प्राकृतिक घटना है जिससे वे प्रभावित नहीं होते और दूसरे प्राणी वे होते है जो आसुरी प्रकृति के होते हैं , उनमें दो श्रेणियाँ हैं , एक ऐसे होते हैं जिनका जीवन काम केंद्रित रहा होता है और अन्य ऐसे होते हैं जिनके जीवन का केन्द्र भय रहा होता है / काम केंद्रित जीवन वालेजब मरते है तब प्राण निकलते समयउनका वीर्य भी बाहर निकल जाता हैऔरतामस गुण धारियोंका जब प्राण निकलता है तबउनका मल – मूत्र बाहर निकल जाता है / हिंदू सभ्यता में मुर्दे को स्नान करानें का रिवाज हैऔर स्नान कराके मुर्दे को स्मसान ले जाते हैं , चन्दन , देसी घी एवं अन्य खुशबू पदार्थों को उसके देह में लगते हैं और तब जलाते हैं / स्नान करानें का मात्र इतना उद्देश्य होता है कि यदि मल – मित्र या वीर्य बहार निकला हो तो उसे धो दिया जाए और निर्मल स्थिति में मुर्दे को बिदा किया जाए /


===ओम्====